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Jan 12, 2020

तिल व तिल के तेल के फायदे



तिल का परिचय 

तिल और इसके तेल से सब परिचित हैं। जाड़े की ऋतु में तिल के मोदक बड़े चाव से खाए जाते हैं। रंग-भेद से तिल तीन प्रकार का होता है, श्वेत, लाल एवं काला। आयुर्वेद में औषधि के रुप में काले तिलों से प्राप्त तेल अधिक उत्तम समझा जाता है। भारतवर्ष में तिल की प्रचुर मात्रा में खेती की जाती है। तिल (बीज) एवं तिल का तेल भारतवर्ष के प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य हैं।
तिल क्या है? 

तिल सीधा, 30-60 सेमी ऊँचा, तीखे महक वाला, शाखित अथवा अशाखित, शाकीय पौधा है। इसका तना सूक्ष्म अथवा रोम वाला, ऊपरी भाग की शाखाएं एवं तना चतुष्कोणीय एवं खांचयुक्त होती हैं। इस पौधे पर जगह-जगह स्रावी-ग्रंथियां पाई जाती हैं। इसके पत्ते बड़े, पतले, कोमल, रोमयुक्त, ऊपर के तरफ के पत्ते कुछ लम्बे होते हैं और 6-15 सेमी लम्बे एवं 3-10 सेमी चौड़े होते हैं। इसके फूल बैंगनी, गुलाबी अथवा सफेद बैंगनी रंग के, पीले रंग के चिन्हों से युक्त होते हैं। इसकी फली 2.5 सेमी लम्बी, 6 मिमी चौड़ी, रोमश, सीधी, चतुष्कोणीय तथा 4-खांचयुक्त होती है। तिल के बीज अनेक, 2.5-3 मिमी लम्बे, 1.5 मिमी चौड़े, चिकने भूरे अथवा सफेद रंग के होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से अक्टूबर तक होता है। 

तिल प्रकृति से तीखी, मधुर, भारी, स्वादिष्ट, स्निग्ध, गर्म तासीर की, कफ तथा पित्त को कम करने वाली, बलदायक, बालों के लिए हितकारी, स्पर्श में शीतल, त्वचा के लिए लाभकारी, दूध को बढ़ाने वाली, घाव भरने में लाभकारी, दांतों को उत्तम करने वाली, मूत्र का प्रवाह कम करने वाली होती है। 

कृष्ण तिल सर्वोत्तम व वीर्य या अंदुरनी शक्ति बढ़ाने वाली होती है, सफेद तिल मध्यम तथा लाल तिल हीन गुण वाले होते हैं। 

कृष्ण तिल(काली तिल ) श्रेष्ठ होते है। सफेद तिल मध्यम, अन्य तिल से कम गुणी होता है। 

तिल तेल मधुर, पित्तकारक, वातशामक, सूक्ष्म, गर्म, स्निग्ध, पथ्य तथा तीखा होता है। 

तिल का पेस्ट मधुर, रुचिकारक, बलकारक तथा पुष्टिकारक होता है। 

तिल पिण्याक मधुर, रुचिकारक, तीक्ष्ण, रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना) तथा आँख संबंधी रोगों को उत्पन्न करने वाली, रूखी, कड़वी, पुष्टिकारक, बलकारक, कफवात को कम करने वाली तथा प्रमेह या डायबिटीज कंट्रोल करने में सहायक होती है। 

अन्य भाषाओं में तिल के नाम 

तिल का वानस्पतिक नाम Sesamum indicum Linn. (सिसेमम इण्डिकम)Syn-Sesamum orientale Linn. है। इसका कुल Pedaliaceae (पेडालिएसी) है और इसको अंग्रेजी में Sesame Gingelli (सीसेम जिनजली) कहते हैं। इसके अलावा तिल को भारत के विभिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। 

Sanskrit–तिल, स्नेहफल;  Hindi-तिल, तील, तिली; Urdu-तिल (Til); Oriya-खसू (Khasu), रासी (Rasi); Kannada–एल्लू (Ellu), येल्लु (Yellu); Gujrati-तल तिल (Tal til); Telugu-नुव्वुलु (Nuwulu); Tamil-एब्लु नूव्वूलु (Eblu nuvulu); Bengali-तिलगाछ तिल (Tilgach til); Nepali-तिल (Til); Punjabi-तिल (Til), तिलि (Tili); Malayalam–एल्लू (Ellu), करुयेल्लू (Karuyellu); Marathi-तील तिल (Teel til), English-तील ऑयल (Teel oil), तिलसीड (Tilseed); Arbi-सिमसिम (Simsim), सिमासिम (Simasim), शिराज (Shiraj); Persian-कुंजद (Kunjad), कुँजेड (Kunjed), रोगने शिरीन (Roghane-shirin)। 


तिल के फायदा - 

बाल झड़ना, असमय सफेद बाल में तिल के तेल के फायदे 

आज के प्रदूषण और असंतुलित जीवनयापन का फल है बालों की समस्याएं। बालों का झड़ना, असमय सफेद बाल होना, गंजापन, रूसी की समस्या आदि ऐसी समस्याएं हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग परेशान रहते हैं। तिल के तेल का इस्तेमाल इन बीमारियों में बहुत फायदेमंद साबित होता है। 
  • तिल की जड़ और पत्ते का काढ़ा बनाकर काढ़े से बाल धोने से बाल सफेद नहीं होते। 
  • काले तिल के तेल को शुद्ध अवस्था में बालों में लगाने से बाल असमय सफेद नहीं होते। प्रतिदिन सिर में तेल की मालिश करने से बाल सदैव मुलायम, काले और घने रहते हैं। 
  • तिल के फूल तथा गोक्षुर को बराबर लेकर घी तथा मधु में पीसकर सिर पर लेप करने से बालो का झड़ना तथा रूसी दूर होती है। 
  • समान मात्रा में आँवला, काला तिल, कमल केसर तथा मुलेठी के चूर्ण में मधु मिलाकर सिर पर लेप करने से बाल लम्बे तथा काले होते हैं। 
सूर्यावर्त में तिल के फायदे 

ट्राइजेमिनल न्यूरालजिया नामक बीमारी में जबड़े से कान की तरफ जो ट्राइजेमिनल नर्व होता है उसमें उसमे तेज दर्द होता है। इस कंडिशन को न्यूरालजिया कहते हैं- 
  • इसके लिए दूध से तिल को पीसकर, वेदनायुक्त स्थान का स्वेदन करने से या मस्तक पर लगाने से सूर्यावर्त नामक सिरदर्द में लाभ होता है। 
  • तिल के पत्तों को सिरके या पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से सिरदर्द कम होता है। 
आँख संबंधी बीमारी में तिल के फायदे 

आँख संबंधी बीमारियों जैसे- सामान्य आँख में दर्द, रतौंधी, आँख लाल होना आदि। इन सब तरह के समस्याओं में तिल से बना घरेलू नुस्ख़ा बहुत काम आता है। 
  • तिल फूलों पर शरद्-ऋतु में पड़ी ओस की बूंदों को मलमल के कपड़े या किसी और प्रकार से उठाकर शीशी में भरकर रख लें। इन ओस कणों को आंख में डालने से लाभ होता है। 
  • काले तिलों का काढ़ा बनाकर आँखों को धोने से नेत्र संबंधी रोगों से राहत मिलती है। 
  • 80 तिल के फूल, 60 पिप्पली, 50 चमेली के फूल तथा 16 काली मिर्च को जल से पीसकर, बत्ती जैसा बनाकर, घिसकर काजल जैसा लगाने से मोतियाबिंद आदि आँख संबंधी रोगों में लाभ मिलता है। 
  • तिल तेल ( तिल का तेल पतंजलि), बहेड़ा तेल, भृंगराज रस तथा विजयसार काढ़ा को मिलाकर लोहे की कड़ाही में तेल पकाने के बाद प्रतिदिन 1-2 बूंद नाक से लेने से देखने की शक्ति बढ़ती है। 
दंत रोग में तिल के फायदे 

शरीर पर तिल के फायदे तो होते ही है साथ में तिल दांतों के लिए भी हितकर है। 
  • प्रतिदिन 25 ग्राम तिलों को चबा-चबा कर खाने से दांत मजबूत होते हैं। 
  • मुंह में तिल को भरकर 5-10 मिनट रखने से पायरिया में लाभ होता है तथा दांत मजबूत हो जाते हैं। 
खांसी में तिल के फायदे 

अगर मौसम बदलने पर आपको बार-बार खांसी होती है तो तिल का सेवन इस तरह से करने आराम मिलेगा। 
  • तिल के 30-40 मिली काढ़े में 2 चम्मच शक्कर डालकर पीने से खांसी में लाभ होता है। 
  • तिल और मिश्री को उबालकर पिलाने से सूखी खांसी मिटती है। 
रक्तातिसार (दस्त से खून आना) में तिल के फायदे 

अगर मसालेदार या पैकेज़्ड फूड खाने के कारण संक्रमण हो गया है और मल के साथ खून आ रहा है तो तिल का घरेलू नुस्ख़ा फायदा पहुँचा सकता है। 

तिलों के 5 ग्राम चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर बकरी के चार गुने दूध के साथ सेवन करने से रक्तातिसार में लाभ होता है। 

आमातिसार या पेचिश में तिल के फायदे

अगर खान-पान में गड़बड़ी या किसी बीमारी उपद्रव के तौर पर पेचिश हो गया है तो तिल के पत्तों को पानी में भिगोने से पानी में लुआब आ जाता है, यह लुआब को पिलाने से विसूचिका या हैजा, अतिसार या दस्त, आमातिसार या पेचिश, प्रतिश्याय (Coryza) और मूत्र संबंधी रोगों में लाभ होता है। 

अर्श या पाइल्स में तिल के फायदे 

अगर आप को पाईल्स की बीमारी है और आप यदि अगर खानपान में अनियमिता करते है तो पाईल्स की बीमारी और बढ़ सकती है l उसमें तिल का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। 
  • तिल को जल के साथ पीसकर मक्खन के साथ दिन में तीन बार भोजन से 1 घण्टा पहले खाने से अर्श में लाभ होता है तथा रक्त का निकलना बंद हो जाता है। 
  • तिल को पीसकर गर्मकर पोटली जैसा बांधने से अर्श में लाभ होता है। 
  • पतंजलि तिल के तेल की बस्ति (एनिमा) देने से अर्श में लाभ होता है। 
पथरी में तिल के फायदे

पथरी होने पर तिल का सही तरह से सेवन करने पर शरीर पर तिल के फायदे मिलते हैं। 
  •  तिल की छाया-सूखे कोमल कोपलों (125-250 मिग्रा) को प्रतिदिन खाने से पथरी गलकर निकल जाती है। 
  • तिल फूलोंके 1-2 ग्राम क्षार में 2 चम्मच मधु और 250 मिली दूध मिला कर पिलाने से पथरी गल जाती है। 
  • 125-250 मिग्रा तिल पञ्चाङ्ग भस्म को सिरके के साथ प्रात सायं भोजन से पहले सेवन करने से पथरी गलकर निकल जाती है। 
गर्भाशय विकार में तिल के फायदे 

अगर ओवरी का सूजन कम नहीं हो रहा है तो तिल का सेवन इस तरह से करना अच्छा होता है। 
  • तिल को दिन में 3-4 बार सेवन करने से गर्भाशय संबंधी रोगों में लाभ होता है। 
  • 30-40 मिली तिल काढ़े का सेवन करने से पीरियड्स के समस्याओं में लाभ होता है। 
  • तिल के 100 मिली काढ़ा में 2 ग्राम सोंठ, 2 ग्राम काली मिर्च और 2 ग्राम पीपल का चूर्ण बुरककर दिन में तीन बार पिलाने से पीरियड्स या मासिक धर्म में लाभ होता है। 
  • रूई के फाहे को तिल के तेल में भिगोकर योनि में रखने से श्वेतप्रदर या सफेद पानी में लाभ होता है। तिल के तेल के फायदे सफेद पानी यानि ल्यूकोरिया में होता है। 
  • 1-2 ग्राम तिल चूर्ण को दिन में 3-4 बार जल के साथ लेने से ऋतुस्राव यानि पीरियड्स नियमित हो जाता है। 
  • तिल का काढ़ा बनाकर लगभग 30-40 मिली काढे को सुबह शाम पीने से मासिक-धर्म नियमित हो जाता है। 
वीर्य या अंदरूनी शक्ति में कमी संबंधी समस्या में तिल के फायदे 

5 ग्राम तिल तथा 1 ग्राम गोखरू चूर्ण को 200 मिली बकरी के दूध में पका कर ठंडा करके उसमें शहद मिलाकर पिलाने से वीर्य की पुष्टि होती है। 


मूत्रदाह यानि मूत्रजलन में तिल के फायदे 

अगर मूत्र करते हुए जलन होता है तो तिल का सेवन इस तरह से करना चाहिए। 

तिल के ताजे पत्तों को 12 घण्टे तक पानी में भिगोकर उस पानी को पिलाने से अथवा तिल के 1-2 ग्राम क्षार को दूध या शहद के साथ देने से पूयमेह में लाभ होता है तथा मूत्रदाह में भी लाभ होता है। 

संधिवात या जोड़ो के दर्द में फायदेमंद तिल 

आजकल अर्थराइटिस की समस्या उम्र देखकर नहीं होती है। दिन भर एसी में रहने के कारण या बैठकर ज्यादा काम करने के कारण किसी भी उम्र में इस बीमारी का शिकार होने लगे हैं। इससे राहत पाने के लिए तिल का इस्तेमाल ऐसे कर सकते हैं। 

तिल तथा सोंठ चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर प्रतिदिन 5-5 ग्राम की मात्रा तीन से चार बार सेवन करने से संधिवात में लाभ होता है। 

पुरुषत्व में तिल के फायदे 

शरीर पर तिल के फायदे के अलावा यह पुरुषत्व बढ़ाने में भी फायदेमंद तरीके से काम करती है। 
  • तिल और अलसी का काढ़ा बनाकर 30-40 मिली मात्रा में लेकर सुबह शाम भोजन से पहले पिलाने से पुरुषत्व की वृद्धि होती है। 
रसायन वाजीकरण में तिल के फायदे 

आजकल के भागदौड़ भरी जिंदगी में सेक्स करने की उत्तेजना में कमी आने लगी है। तिल का सेवन इसमें मदद कर सकता है। काले तिल और भृंगराज के पत्तों को लगातार एक मास तक सेवन करने से लाभ मिलता है। (पथ्य में सिर्फ दूध का आहार लें) 

बिस्तर में पेशाब कर देने के बीमारी में तिल के फायदे

रात्रि में जो बच्चे बिस्तर गीला कर देते हैं, उनके लिए तिल का लम्बे समय तक सेवन बहुत लाभकारी है। 

विष में तिल का प्रयोग 
तिल और हल्दी को पानी में पीसकर मकड़ी के काटे हुए स्थान पर लेप करने से मकड़ी का विष उतर जाता है। 
  • तिल को पानी में पीसकर काटे हुए स्थान पर लेप करने से बिल्ली का विष उतर जाता है। 
  • तिल को सिरके में पीसकर काटे हुए स्थान पर मलने से भिड़ (बर्रैं) का विष उतर जाता है। 
  • तिल की खली (पिण्याक) को पीसकर काटे हुए स्थान पर लगाने से बिच्छु के काटने से जो दर्द होता है उससे आराम मिलता है। 
  • वात प्रधान कीट के काटने पर तिल की खली (पिण्याक) का लेप करके तिल का तेल पतंजलि से मालिश करने से लाभ होता है। 
बुखार में तिल के फायदे 

तिल की लुगदी को घी के साथ लेने से विषमज्वर में लाभ होता है। 

तिल का उपयोगी भाग 

आयुर्वेद में तिल के जड़, पत्ते, बीज एवं तेल  का औषधि के रुप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। तिल तेल का बाहरी प्रयोग इन बीमारियों में करने से लाभ मिलता है- 
  • तिल का तेल त्वचा के लिए लाभकारी है। प्रतिदिन तिल तेल की मालिश करने से मनुष्य कभी भी बीमार नहीं होता। तिल तेल की मालिश से रक्त विकार, कमर दर्द, मसाज, गठिया का दर्द जैसे रोगों में लाभ होता है। 
  • तिल को पीसकर जले हुए स्थान पर लेप करने से जलन तथा दर्द कम होता है। 
  • तिल के पत्तों को सिरके या पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से सिरदर्द मिट जाता है। 
  • तिल और सिरस की छाल को सिरके के साथ पीसकर मुंह पर लगाने से मुहांसे ठीक हो जाते हैं। 
  • चोट और मोच पर तिल की खली को पानी के साथ पीसकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। 
  • तिल और अरंडी को अलग-अलग कूटकर दोनों को तिल तेल में मिलाकर लेप करने से चोट की पीड़ा मिटती है। 
  •  तिल को दूध में पीसकर मस्तक पर लेप करने से सूर्यावर्त्त सिरदर्द में लाभ होता है। 
  • तिलों की पोटली जैसा बनाकर घाव पर बांधने से घाव जल्दी भर जाते हैं। 
  • सब प्रकार के व्रणों या अल्सर पर तिल का तेल पतंजलि लगाना अच्छा होता है। 
  • यदि शरीर में किसी भी अंग में नागफनी या थूहर का कांटा घुस जाय और निकालने में दिक्कत हो तो उस जगह तिल का तेल बार-बार लगाने से कुछ समय में वह कांटा बिना परिश्रम के निकल जाता है।
  • काले तिल को पीसकर नासूर या अल्सर पर लगाने से तथा कम्पिल्लक को पानी में घिसकर लेप करने से नासूर में लाभ होता है। 
तिल के साइड इफेक्ट 

कुष्ठ, सूजन होने पर तथा प्रमेह यानि डायबिटीज के रोगियों को भोजन आदि में तिल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

तिल का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए 

बीमारी के लिए तिल के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए तिल का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार- 
  • 3-6 ग्राम बीज चूर्ण, 
  • 10-20 मिली तेल, 
  • 30-40 मिली काढ़े का सेवन कर सकते हैं।